Saturday, January 29, 2011

दर्शन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध

    एक सच्चा दार्शनिक वही कहलाता है, जो ज्ञानी होता है और यह ज्ञान शिक्षा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है | इस प्रकार दर्शन एवं शिक्षा के मध्य गहन सम्बन्ध है | व्यक्ति के व्यव्हार को सुधार की दिशा मे परिवर्तित  करने वाले विचारों को शिक्षा मे रखा जाता है|  कुछ विद्वानों ने समग्र जीवन को शिक्षा और शिक्षा को जीवन माना है | व्यक्ति जीवन मे सदविचारों को 'दर्शन' द्वारा ही प्राप्त कर सकता है और दर्शन मे जीवन जगत से सम्बंधित समस्याओं का अध्यन किया जाता है | अतः शिक्षा एवं दर्शन पुर्णतः एक-दूसरे पर आश्रित है | एक के आभाव मे दूसरे का अस्तित्व असंभव है | इस सम्बन्ध मे जेन्टाइल ने कहा है कि - "शिक्षा दर्शन की सहायता के बिना सही मार्ग पर नहीं बढ़ सकती है| शिक्षा की समग्र समस्याओं का समाधान कराना और उसको क्रियान्वित करना दर्शन का कार्य है तथा दर्शन की प्रवृतियों, समस्याओं एवं विचारों को कार्य-रूप मे परिणित करने का काम शिक्षा का है | जीवन रुपी शरीर का दर्शन मस्तिष्क है और शिक्षा उसके हाथ एवं पैर हैं | जिस प्रकार से शारीर हेतु समग्र अंगों का होना नितांत आवश्यक है उसी प्रकार से शिक्षा हेतु दर्शन और दर्शन हेतु शिक्षा का होना अति आवश्यक है | कतिपय दार्शनिकों के अनुसार शिक्षा एवं दर्शन एक आत्मा व दो शारीर हैं |"
दर्शन एवं शिक्षा के मध्य सम्बन्ध में विद्वानों ने अपने-अपने विचारों को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है -
    (१) फिक्टे-"दर्शन के आभाव मे शिक्षण कला मे पुर्णतः स्पष्टता नहीं आ सकती |"
    (२) जी ई पार्टिज-"गहन अर्थ मे यह कहना विवेक संगत होगा कि दर्शन शिक्षा पर आधारित है और शिक्षा दर्शन पर |"
    (३) रास-"दर्शन व शिक्षा एक सिक्के के दो पहलूओं के समान हैं | एक मे दूसरा निहित है | दर्शन जीवन का विचारात्मक पक्ष है तथा शिक्षा क्रियात्मक |"
    (४) एडम्स-"शिक्षा दर्शन का गत्त्यात्मक पक्ष है | यह दार्शनिक विश्वास सक्रिय पक्ष एवं जीवन के आदर्शों कि प्राप्ति का व्यावहारिक साधन है |"
    (५) स्पेंसर-"वास्तविक शिक्षा, वास्तविक दर्शन द्वारा ही क्रियान्वित हो सकती है |"
    (६) जेन्टाइल-"शिक्षा दर्शन की सहायता के बिना सही मार्ग पर नहीं बढ़ सकती है|"

    शिक्षा एवं दर्शन के मध्य सम्बन्ध को बताने के हेतु निम्नलिखित तथ्यों कि सहायता ली जा सकती है-
    (१) शिक्षा दर्शन के प्रकार का सर्वोत्तम साधन है- एडम्स ने इस सम्बन्ध मे कहा है कि- "शिक्षा दर्शन का गत्त्यात्मक पहलू है और दर्शन शिक्षा का सैद्धान्त्तिक पहलू |" दार्शनिक निरंतर सत्य कि खोज मे लगा रहता है और ब्रहम्मांड, प्रकृति आदि के बारे मे चिंतन एवं कल्पना करता रहता है | शिक्षा बिना दर्शन मूल्य विहीन है | अतः सत्य ही कहा गया है शिक्षा, दर्शन को जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनती है | इसका कारण यह है कि व्यक्ति जो कार्य करता है वह शब्दों, विचारों एवं विश्वासों से उत्तम है | शिक्षा द्वारा ही एक विश्वास के परिणाम कि उपलब्धि होती है |
    (२) समस्त शिक्षा शास्त्री महान दार्शनिक- दर्शन एवं शिक्षा के मध्य सम्बन्ध इससे भी स्पस्ट होता है कि जितने भी शिक्षाशास्त्री हुए है वे सब महान दार्शनिक भी रहे है और इनके दार्शनिक विचारों का प्रसार शिक्षा द्वारा ही हुआ, क्योकि जब किसी दार्शनिक द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त किया जाता है तब वह दर्शन के आधार पर ही शिक्षा कि योजना निर्धारित करता है जैसे- प्लेटो महान शिक्षाशास्त्री व दार्शनिक थे | इन्होने अपने प्रख्यात ग्रन्थ 'रिपब्लिक' मे शिक्षा कि योजना प्रस्तुत की है | इसी प्रकार राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी शिक्षाशास्त्री एवं दार्शनिक थे इन्होने दार्शनिक पृष्ठभूमि के आधार पर शिक्षा को प्रस्तुत किया है | इसके अतिरिक्त अरस्तू, पैस्तोलोजी, टैगोरे, स्वामी विवेकानंद, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, अरविन्द, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि भी अपने समय के महान दार्शनिक रहे तथा इन सभी के विचारों ने शैक्षिक क्षेत्र मे महान परिवर्तन किये |
    (३) दर्शन शिक्षा की रूपरेखा निर्धारित करता है- दर्शन, शिक्षा के अंगों को निर्धारित करता है | दर्शन शिक्षा के उद्देश्य,शिक्षा का स्वरुप, शिक्षा मे अनुशासन, विद्यालयी व्यवस्था, शिक्षक-छात्र सम्बन्ध आदि को निर्धारित करता है तदानुरूप ही पाठ्यक्रम की योजना बनाई जाती है| इन समस्त बातों से स्पस्ट है की शिक्षा दर्शन पर ही आधारित होती है | इस सम्बन्ध मे जेन्टाइल ने कहा है कि- "शिक्षा के यथार्थ स्वरुप को नहीं समझा जा सकता, यदि व्यक्ति दर्शन कि गहन समस्याओं कि चिंता किये बिना ही शिक्षा प्रदान करते रहेंगे |"
    (४) दर्शन शिक्षा का अग्रगामी है- शैक्षिक क्षेत्र मे पथ-प्रदर्शन कि सतत रूप से आवश्यकता होती है | यह कार्य दर्शन का है | दर्शन ही लक्ष्यों को निर्धारित करता है | दर्शन कि सहायता के आभाव मे कोई भी शैक्षिक योजना असफल ही होगी | इस सम्बन्ध मे स्पेंसर ने उचित ही लिखा है कि- "वास्तविक शिक्षा का संलयन वास्तविक दर्शन ही कर सकता है |"
    (५) दर्शन शिक्षा द्वारा अनुसरित मार्ग कि ओर संकेत करता है- दर्शन शिक्षा द्वारा अनुसरित मार्ग पर चलता है | दर्शन शिक्षा कि समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है, शिक्षा का पथ प्रदर्शन करता है और शिक्षा कि योजना निर्धारित करता है | दार्शनिकों के लिए शिक्षा एक प्रयोगशाला है जिसमे वे अपनी कल्पनाओं, सिद्दांतों को परख कर, उसे व्यवहारिक रूप प्रदान करते है | इस अर्थ मे शिक्षा को प्रायोगिक दर्शन के रूप स्वीकार किया जाता है | शिक्षा, दर्शन का व्यव्हार है और दर्शन, शिक्षा का विचार है | दर्शन शिक्षण पद्धतिओं पर विचारविमर्श करके, उनकी रूपरेखा निश्चित करता है व अध्यापक को देता है | अध्यापक उन विचारों, आदर्शों, तथा सिद्धांतों को उपयोगी साधनों के माध्यम से समाज को आचरण मे ढालने हतु कार्य करता है | दूसरे शब्दों मे, शिक्षा उन्हे कार्य रूप मे परिणित करके वाव्हारिक जीवन का अंग बनती है |  एडम्स के अनुसार- "शिक्षा दर्शन का गत्त्यात्मक पक्ष है |" हरबर्ट के अनुसार- "जब तक समस्त दार्शनिक समस्यायों को व्यावहारिक रूप प्रदान नहीं किया जायेगा तब तक शिक्षा को चैन नहीं आयेगा |"
    (६) आधुनिक शिक्षा व समाज मे वर्तमान दर्शनों का विशिष्ट प्रभाव- दर्शन द्वारा जिसका अस्तित्व है, उसे ही सत्य मानने के कारण आज दर्शन का शिक्षा एवं समाज पर विशिष्ट प्रभाव है | शिक्षा और दर्शन का एक ही लक्ष्य है वो है- जीवन कि उन्नति करना |
    जिस प्रकार शिक्षा पर दर्शन का प्रभाव पड़ता है ठीक उसी प्रकार शिक्षा के आभाव मे दर्शन पूर्ण नहीं हो सकता है | इस बात को निम्नलिखित तथ्यों कि सहायता से समझा जा सकता है-
    (अ) शिक्षा दर्शन के निर्माण मे सहायक होती है- यह पुर्णतः सत्य है कि यदि दार्शनिक मे चिंतन, बौद्धिक क्षमता, तर्क और विचार शक्ति का आभाव है तो वह दार्शनिक सिद्धांतों को जन्म नहीं दे सकता, क्योंकि बौद्धिक शक्ति के मूल मे शिक्षा ही निहित होती है | इस प्रकार शिक्षा दर्शन के निर्माण मे सहायक होती है |
    (ब) शिक्षा दार्शनिक सिद्धांतों के हस्तांतरण मे सहायक होती है- शिक्षा ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा दर्शन के सिद्धांतों को अगली पीढ़ी तक पहुचाया जा सकता है | शिक्षा कि प्रक्रिया के आभाव मे दर्शन का कोई अस्तित्व नहीं रह जायेगा | अतः यह सत्य है कि शिक्षा द्वारा ही दर्शन का संरक्षण किया जा सकता है |
    (स) शिक्षा दर्शन को सक्रिय बनाने मे सहायक है- दर्शन का व्यावहारिक पहलू शिक्षा ही है | दर्शन तो मात्र सिद्धांतों को जन्म देता है, सिद्धांतों के उचित या अनुचित पर नहीं | शिक्षा ही इस तथ्य को सिद्ध करती है कि कौन-सा सिद्धान्त उचित है और कौन सा अनुचित है | शैक्षिक क्षेत्र मे होने वाले नूतन अनुसन्धान ही दार्शनिकों को चिंतन हेतु सामग्री प्रदान करते है | जॉन डीवी के अनुसार- "अपनी सामान्य अवस्था ने शिक्षा सिद्धान्त ही दर्शन है |"
    (द) शिक्षा दर्शन के अमूर्त सिद्धांतों को मूर्त रूप प्रदान करती है- दार्शनिक क्षेत्र मे जितने भी विचार होते हैं, वे सब सूक्ष्म एवं अमूर्त होते है | इन सूक्ष्म एवं अमूर्त विचारों को शिक्षा ही स्थूल रूप प्रदान करती है | शिक्षा ही वह कसौटी है, जिस पर दार्शनिक सिद्धांतों को कसा अथवा परखा जा सकता है |

    उपरोक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दर्शन एवं शिक्षा मे परस्पर गहन सम्बन्ध है | एक के आभाव मे दूसरा अस्तित्वहीन है | दर्शन व शिक्षा के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए जेन्टाइल महोदय ने लिखा है कि- "जो व्यक्ति इस बात में विश्वास करते है कि दर्शन से सम्बन्ध बनाये बिना, शिक्षा कि प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सकती है, शिक्षा के विशुद्ध स्वरुप को समझने मे अक्क्षमता अभिव्यक्त करते है | शिक्षा कि प्रक्रिया दर्शन कि सहायता के आभाव मे उचित मार्ग पर अग्रसरित नहीं हो सकती |" अतः कह सकते है कि शिक्षा एवं दर्शन पुर्णतः एक-दूसरे के पूरक हैं |

15 comments:

Unknown said...

गागर में सागर की पंक्तियों को चरितार्थ कर रही है ये पोस्ट

Unknown said...

Bhut hi sundhar h ye partita

Unknown said...

Thank u for this

Dr.Manisha Thakur said...

शिक्षा व दर्शन के गहन संबंध को प्रतिस्थापित कर सरल शब्दों में सुस्पष्ट किया गया है।वर्णीय दर्शन व्यक्त शिक्षा की एक कसौटी है।अर्थात इन दोनों की उपस्थिति सभी को अनुशासित करने हेतु अनिवार्य है।

Unknown said...

Really very good, clear and easy to understand
Thanks

Unknown said...

दर्शन क्या है कृपया इसे सरल शब्दों में समझाएं

Unknown said...

अतिसुंदर ।

Unknown said...

Very nice

Unknown said...

Very nice

राजकमल रक्सेल said...

हमारे वातावरण में होने वाली घटनाओं या समस्याओं को हम दर्शन कहते है जिन्हें हम घटित अवस्था मे देख रहे होते है...
उदाहरण-यदि आपको गाड़ी नही चलानी आती तो ये आपके समक्ष एक समस्या है जिसे आप जानते है..मतलब आपने एक समस्या का दर्शन किया है..
गाड़ी सीखने के लिए आप किसी प्रशिक्षित व्यक्ति पास जाएंगे जो आपको प्रशिक्षित करेगा... यानी कि आप शिक्षा ग्रहण कर रहे है..शिक्षा कहलायेगा...

दुर्गेश निर्झर said...

अति महत्वपूर्ण कन्टेंट

Unknown said...

Thank you for this topic 😃

Singh Saab said...

शिक्षा के दार्शनिक आधार क्या है।

Unknown said...

बहुत सुंदर शब्दों में समझाया गया है। दर्शन और शिक्षा जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी जानकारी होना भी जरूरी है।

madacvalderrama said...

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